रे मन बढ़ते रहने की कसम ले
बार बार पीछे मुड कर देखना क्या
राह चलते पत्थर चुभ सकते हैं
चलना है फिर तीसों से घबराना क्या ।
जीवन की गति पर अपना ज़ोर नहीं
फिर सपने क्यूँ उनका संजोना क्या ।
चलते रहना ही कला जीवन की
फिर जीत कैंसी और हारना क्या ।
खाली हाथ ही आया खाली ही जाएगा
फिर पाना किसे और खोना क्या ।
हर साँस के साथ मुस्कराए जा
जीना यही कौन जाने मरना क्या ।
मौत आदि है या कोई अंत
इस अनबुझी पहेली में उलझना क्या ।
मौत सबको आती ,हमको भी आएगी
उसकी आज से सोच करना क्या ।
आज ही आज यही पल जीवन है
जीए जा कल का भरोसा करना क्या ।
उस परम प्रभु की शरण ले ले
फिर कोई रोना क्यूँ और हँसना क्या ॥
बार बार पीछे मुड कर देखना क्या
राह चलते पत्थर चुभ सकते हैं
चलना है फिर तीसों से घबराना क्या ।
जीवन की गति पर अपना ज़ोर नहीं
फिर सपने क्यूँ उनका संजोना क्या ।
चलते रहना ही कला जीवन की
फिर जीत कैंसी और हारना क्या ।
खाली हाथ ही आया खाली ही जाएगा
फिर पाना किसे और खोना क्या ।
हर साँस के साथ मुस्कराए जा
जीना यही कौन जाने मरना क्या ।
मौत आदि है या कोई अंत
इस अनबुझी पहेली में उलझना क्या ।
मौत सबको आती ,हमको भी आएगी
उसकी आज से सोच करना क्या ।
आज ही आज यही पल जीवन है
जीए जा कल का भरोसा करना क्या ।
उस परम प्रभु की शरण ले ले
फिर कोई रोना क्यूँ और हँसना क्या ॥
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई स्वीकारें।
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