Thursday, June 18, 2009

नियति

फूलों से हरदम मुस्कराना सीखा
कलियों से खिलने की चाह भरी जीवन में
पर काँटों में उलझा ,फट्टा आँचल कई बार
पैरों में कंकड़ चुभे कई हज़ार
कि रोना पड़ा कई बार ॥
नदी की कल कल गति से चलना सीखा
सागर से मिलने की चाह भरी जीवन में
ठोकरों ने सर फोड़ा कई बार
गिरे और उठना हुआ दुश्वार
कि रुकना पड़ा कई बार ॥
दीपक की बाती से पल पल जलना सीखा
दूसरों को दे सकूँ प्रकाश इस जीवन में
आंधियां और तूफान आए ऐसें हज़ार
बिखर गया तेल और सहर से पहले
ही बुझाना पड़ा कई बार ॥
सुनी वाणी संतो की ,सत्य का मार्ग दिखा
करूँ कर्मठ साधना मैं भी इस जीवन में
भाग्य की रेखाओं को समझना दुश्वार
जो चाहे वह पाए ,ऐंसा नहीं रे संसार ,नियति
के सामने झुकना पड़ा बार बार ॥

No comments:

Post a Comment