Thursday, June 18, 2009

ऐ ज़िन्दगी तुझे भरपूर जिया है

ऐ ज़िन्दगी तुझे भरपूर जिया है
इसकी राह के हर मोड़ को
मुकां समझ कर लिया है मैं ने ॥
ख्याल तो बहुत इस दिलो दिमाग में आए
मगर उनका इज़हार करना न आया
कभी कलम टूट गई
कभी स्याही सूख गई
कविता कभी आटे में गूंद गई
कहानी कभी चप्पल में घिस गई
मगर डायरी के पन्नों पर
किसी आने वाले कवि को जन्म दिया है ॥
ऐ ज़िन्दगी ------------------
मन जब कभी उदास हुआ है
दुनिया की बेरूखी से पासबाँ हुआ है
ब्रश भी उठाया है
रंग भी बिखेरे हैं
कैनवस पर मन को उतारा है
रंगों से बहुत खिलवाड़ किया है
दुनिया को कुछ मिला हो या नहीं
अपनें जीने का हर बार नया रंग ढूढ़ लिया है ॥
ऐ ज़िन्दगी ---------------------
एक बार साज़ बजा कर
कोई संगीतकार नहीं होता
चाहत हो किसी की कितनी भी
कोई गीतकार नहीं होता
स्वर और साज़ की एक दुनिया और भी है
सुनने का भी अपना अंदाज़ है
दीवानों और मस्तानों की तरह
जी भर कर इसका रस पान किया है ॥
ऐ ज़िन्दगी ------------------------
हर ज़िन्दगी यहाँ एक कहानी
हर शख्स एक अदाकार
इस नाशवान जग में
बनी हर चीज़ टूट जाती है
मर जाना है , हर किसी को
मगर ज़िन्दगी फिर भी जी जाती है
मिटटी के कई घरौंदे बनाकर
खुशिओं से झोली को भर लिया है ॥
ऐ ज़िन्दगी --------------------------॥

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