आंसुओं के कई रूप देखे हैं
जीवन में कई बार आए
कभी दरद ले गए
कभी दे गए
कभी मन हल्का किया है इन्हों ने
कभी इक भार दे गए
कैंसे ममता की अंगडाई यां भर भर कर बहे,
कभी माता पिता के स्नेह से वंचित
दुःख के चीत्कार बने ये आंसू,
कैंसे खुशी से भर आई आँखों से
दब्दाबाए ये आंसू परन्तु
इस बार नई पहचान दे गए ये आंसू
प्रातः ध्यान में प्रभु के सर झुकाया था
निर्झर झरने से बह उठे
प्रश्न उठा __?
ये कैंसे और क्यूँ बहे आंसू
मगर उत्तर कहाँ था __?
बड़ी देर तक
कई दिन तक
ध्यान में सर झुकाऊं
बह उठे सरिता के जल से ये आंसू
सोचा __
मन में रोष अवश्य है
रिश्तों के झूठे बंधन का
द्वेष भी अवश्य है
जीवन प्रश्नों के मंथन का
दुःख और शोक कैंसा __?
जीवन के सत्य -दर्शन का
फिर ये क्रंदन कैंसा __?
पर क्या ये क्रंदन था __?
लगता था
मानो शिव की जट्टाओं से निकली गंगा
उत्तर आई थी आंखों में
तन मन नहा उठा था
इस पावन धरा में
जब ये रुके आंसू
तो कितना अन्तर था __
कहाँ गए
कौन ले गया था वह बहता निर्झर जल
कहाँ था वह रोष ,द्वेष
शोक और दुःख
इस बार स्वछता ,नीरवता
आनंद दे गए थे वह आंसू
अपनी एक नई पहचान दे गए थे ये आंसू ॥
Friday, June 26, 2009
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ये कैंसे और क्यूँ बहे आंसू
ReplyDeleteमगर उत्तर कहाँ था __?
बड़ी देर तक
कई दिन तक
ध्यान में सर झुकाऊं
बह उठे सरिता के जल से ये आंसू
सोचा __
bahut sunder likha hai aapne
aansuon ko zubaan dedi aapne
ReplyDeleteaansuon ki bhasha gadh dee aapne
aapko badhaai !
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआभार
मुम्बई टाईगर
हे प्रभु यह तेरापन्थ