आज मन उदास है ----मैं नहीं
यह मैं और मेरा मन
नदिया के दो किनारे ----मालुम न था
मन कभी रोता और मैं हंसती हूँ
कभी यह हँसता है और मैं रोती हूँ
यह मेरे दो नैन कजरारे ----मालूम न था
कभी गूंजता किलकारियों से आँगन
कहीं सन्नाटा रोता मौत का क्रंदन
यह तो जीवन के साँझ सवेरे ------मालूम तो था
कभी मन रीझता बांसुरी की तानों में
कभी खो जाता मौन समाधि में
निराकार --साकार तेरे दो द्वारे ----मालूम तो था
आज मैं शांत हूँ --मेरा मन नहीं
मगर कोई सवाल नहीं
मन को भी तो यह मैं ही चलावे ----मालूम न था
यह मैं और मेरा मन
नदिया के दो किनारे ----मालुम न था
मन कभी रोता और मैं हंसती हूँ
कभी यह हँसता है और मैं रोती हूँ
यह मेरे दो नैन कजरारे ----मालूम न था
कभी गूंजता किलकारियों से आँगन
कहीं सन्नाटा रोता मौत का क्रंदन
यह तो जीवन के साँझ सवेरे ------मालूम तो था
कभी मन रीझता बांसुरी की तानों में
कभी खो जाता मौन समाधि में
निराकार --साकार तेरे दो द्वारे ----मालूम तो था
आज मैं शांत हूँ --मेरा मन नहीं
मगर कोई सवाल नहीं
मन को भी तो यह मैं ही चलावे ----मालूम न था
बहुत उम्दा!!
ReplyDeleteमन कभी रोता और मैं हंसती हूँ
ReplyDeleteकभी यह हँसता है और मैं रोती हूँ
बहुत खूब लिखा है आपने।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
kya kare man aisa hi hota hai.........sahi baat kahi aapane
ReplyDeleteEk jeevan bharkee tapasya ke baad hee aise alfaaz koyi likh sakta hai...!
ReplyDeletehttp://kavitasbyshama.blogspot.com
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