Monday, June 15, 2009

पहली दस्तक

यहीं से उठी थी चाह
भगवान को मिलने की चाह
उसके घर का पत्ता
पूछने की लगन
यहाँ हर आने वाला
जाता है उसके घर
कौन हैं हम
कहाँ से आते हैं
कहाँ जायंगे
यह इस सृष्टि के प्रशन
सदियों से पूछता रहा इन्सान
किसको उत्तर मिले और क्या मिले
तब से ढूंढ रही हूँ
मिलता है कई बार , आँख मिचौनी खेलता है हर बार ।

तभी पहली बार दस्तक दी थी
किसी ने मेरे द्वार पर
मैं दौडी थी ,द्वार खोला था
एक प्रकाश पुंज -एक दिव्य नाद
आओ मैं तुम्हें ले चलूँ
उस प्रभु के पास
मैं ने उस प्रकाश को पकड़ना चाहा था
उस नाद के पीछे दौड़ना चाहा
पल मैं ही सब एक दम लुप्त
पर भूली नहीं हूँ वह प्रकाश
वह प्रकाश चमकता रहे
हम साक्षी बन उसे देखते रहे , देखते रहें ।

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