Sunday, June 14, 2009

क्या भूलूं क्या याद करूँ ---

वानप्रस्थ की देहलीज़ पर बैठ कर
जी चाहता है ,
जीवन की कहानी यद् करूँ ,
और वोह यादें
कुछ कविता के बोल हों ,
गीतों की गुनगुनाहट हो
स्वरों का झुर्मट हो ,
जिसमें मैं कहीं खो जाऊँ
पर वह परम प्रकाश दमकता रहे
जिसे सुनने वाला - बस सुने - शौक से सुनता रहे /
वैसे तो ---
हर इन्सान अपनी एक कहानी
अपने साथ लाता है
जीवन के कड़वे मीठे अनुभव
उसके हर मोड़ को
हर आयाम को मुकाम देते हैं ,
मज़ा तब है जब वह प्रकाश साथ चलता रहे ,
तुम साक्षी बन उसे देखो और बस देखते रहो /

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