तुम कहते हो
कुछ ऐसा लिखो
कि मस्ती का आलम छा जाए
बोलो सिसकती फिजायों में
मस्ती किस से मांगूं
बोलो क्या सुनायुं
कैसे तुम्हे बहलाऊँ ।
लो -फिजाओं को ही पकड़ लो
तो गीत नया बन जाए
प्रकृति तो गोली बारूद की
आवाजों से गूंगी हो गई
उस से क्या प्रेरणा पाऊँ
आज क्या गुन गुनाऊं
कैसे तुम्हे बहलाऊँ ।
तो -समाज पर कुछ व्यंग हास लिख डालो
तो महफिल जम जाए
उसकी तो स्वयम ही
जीता जागता परिहास हूँ
महफिल में भला अपनी
खिल्ली स्वयं उडाऊं
कैसे तुम्हें बहलाऊं ।
हाँ -ऐसा अगर हो जाए
वेदना सारी पी कर
शिव की तरह नील कंठ हो जाऊँ
मैं मर मर कर जी जाऊँ
एंसे में स्वयम कुछ समझूं
कुछ तुम्हें समझाऊँ
एंसे तुम्हे बहलाऊँ
कैंसे तुम्हे बहलाऊँ ॥
Friday, June 19, 2009
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bahut bhaw puran.......... ek sundar rachana
ReplyDeletekhubsurat rachana
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है--
हाँ -ऐसा अगर हो जाए
वेदना सारी पी कर
शिव की तरह नील कंठ हो जाऊँ
मैं मर मर कर जी जाऊँ
भावपूर्ण सुन्दर रचना! बधाई.
ReplyDeleteहाँ -ऐसा अगर हो जाए
ReplyDeleteवेदना सारी पी कर
शिव की तरह नील कंठ हो जाऊँ
मैं मर मर कर जी जाऊँ
एंसे में स्वयम कुछ समझूं
कुछ तुम्हें समझाऊँ
one of my favourites among your poems