Wednesday, June 24, 2009

जीवन के मोड़

जीवन की राह पर कई मोड़ लिए हैं --
हर मोड़ पर यूँ लगा --यह राह ही मेरी मंजिल हो शायद
मेरा वह लक्ष्य हो
जिसे मैं पाना चाहती हूँ
मगर बस दो कदम
या कभी चार
कि
राह मुड जाती है _
मन कहता है
यह तो तेरी मंजिल नहीं ।
यह पगडंडियाँ
यह पहाडो के छोटे छोटे रास्ते
यह राह के झरनों का
अंजुली में भरा जल
तेरी मंजिल नहीं , लक्ष्य नहीं
यह तो सोपान हैं ,
संबल हैं
कभी तुम्हें नींद से जगाने के
कभी तुम्हारी तत्काल उठी प्यास को बुझाने के ।
तेरी यात्रा बाहर की नहीं
तेरी मंजिल कोई सागर या आकाश नहीं
तेरा लक्ष्य यह षण भंगुर संसार नहीं
तुम्हारी यात्रा भीतर की --गहरी ,
वह गहराई जिसका कोई अंत नहीं
असीमित अनंत
जिसकी कोई डोर नहीं ,कोई छोर नहीं
राह नहीं ,मोड़ नहीं
प्राप्ति का कोई शोर नहीं
अनंत में smana अनंत हो जाना ।

No comments:

Post a Comment