कुछ समय पहले की हैं ये कवितायें ------पुरानी यादों की तरह सामने आ जाती है ----
kal राह चलते
किसी ने रोका
पैरों तले एक चरमराता बोर्ड था
लिखा था -सुंदर दिल्ली ,स्वच्छ दिल्ली
जैसे ही दूर हटाने को हुआ कि वह बोल उठा
"मैं तुम्हारी हूँ
बस एक बार मुझे अपना तो कहो
फिर देखो मैं कितनी सुंदर हूँ
और स्वच्छ भी ॥
Thursday, July 30, 2009
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छोटी किन्तु गम्भीर रचना।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
भावनाओं को संवेदित कर दिया आपने।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
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shyamalsuman@gmail.com
वाह! बात कहने का अंदाज सुंदर है।
ReplyDeleteरक्षाबंधन पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
विश्व-भ्रातृत्व विजयी हो!