मेरे भगवन ----
खुशियाँ तुमने तो बहुत बिखेरी मेरे आँगन में
मगर न जाने कहाँ क्या भूल हो गई
जीवन में खुल कर मुस्कराना न हुआ ॥
महफिलें तो सजी कई एक मेरे कानन में
मगर स्वर न जाने कहाँ खो गए
मौन तोड़ कर कभी मुझ से गाना न हुआ ॥
फूल बहुत महके जीवन की बगिया में
मगर खुशबु उनकी कब हवा में खो गई
जीवन के किसी पल को महकाना न हुआ ॥
साकी ने शमा कई बार जलाई मय खाने में
जाने कौन बार बार मय छलका गया
रोक सके जो अपने में वह पैमाना न हुआ ॥
बहारें तो कई बार आई भादों और सावन में
किसी ने मगर तोडी डोर झूले की
झूम कर मस्ती का कभी तराना न हुआ ॥
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बहारें तो कई बार आई भादों और सावन में
ReplyDeleteकिसी ने मगर तोडी डोर झूले की
झूम कर मस्ती का कभी तराना न हुआ ॥
सुन्दर प्रस्तुति।
नोट - वर्ड वेरीफिकेशन हँटाने का उपाय करें। लोगों को टिप्पणी देने में आसानी होगी।
सादर
श्यामल सुमन
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Behad sundar,sulajhi huee rachna..!
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