ढलती साँझ में
देखती हूँ पड़ी है सिराहने
एक गठरी अधूरे सपनों की
अधूरी चाहतें कुछ अपनों की
इनको यहीं कहीं अनजानी थाह
में दफना दूँ ,
साथ गई तो --घनेरा दर्द सा ले कर
वापिस आएँगी मेरे साथ
कई दिनों की पुरानी बास्
लायेंगी अपने साथ
लो दफना दिए ।
ढलती साँझ में
काले बादलों की टुकडियों में
चमकती पीली किनारी सी देखी है कभी
वैसे ही बिल्कुल वैंसे ही
चमक उठते हैं यह भाव
और देखती हूँ -----
झोली भरी है --जिसमें भरा
प्यार मेरे अपनों का
आशीष माता पिता ,गुरुजनों की
गुरुदेव का सानिध्य
और संतोष पूर्ण समर्पण का
इनसे तो मोह घनेरा है ,
संतुष्ट हूँ साथ जायेंगे
फिर मेरे साथ आयेंगे
और सवारूंगी यह भाव
कुछ भी अधूरा नहीं होगा
इस जीवन की सारी सीख
अपनें साथ लाऊंगी
तब साधना की शुरुआत न होगी
साधक जो चल आया
उन क़दमों की पहचान होगी
वह यात्रा की शुरुआत न होगी
अधूरी यात्रा की पूर्णाहूति होगी
वह मोक्ष पथ तो होगा
पर मोक्ष भी होगा ॥
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bahut sundar hai aapake bhaw our shabad jo ek sunadar rachana ka nirmarn kar dale hai .....badhaaee
ReplyDeleteअपने अनुभव और भाव को आपने खूब सहजता से समेटा है इस रचना में जिसमें अंततोगत्वा आशा का संचार भी है। सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
गहरे अर्थ --- सुन्दर रचना
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छा लिखा है मन के भावों को
ReplyDeletebahut sundar aatm sntish ke bhav kavita ko purnta de gye .
ReplyDeleteसुन्दर रचना....
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