आज विदा की इस बेला में
क्या भूलूं क्या याद करू
तुमसे मैनें क्या खोया क्या पाया
जीवन गुण अवगुण का मिश्रण
तो मैली कर देते
गुण उभरते ,कंचन कर देते काया
आज क्यूँ उलझूं इन प्रश्नों में
कंचन काया को ही देखूं
सौन्दर्य जिसमें तुम्हारा उभर आया
क्या भूलूं ,क्या याद करूँ --------
जगत तो सत्य मिथ्या का एक ही सिक्का
आदर्शों की खाली गागर बजती देखी
प्यार के नीचे घृणा पनपती देखी
आज भला यह सब क्यूँ सोचूं
तुम्हें तुमसा ही बस देखूं
जो रूप तुम्हारा निखर कर आया
क्या भूलूं क्या याद करूँ -------------
समय तो उजाले अंधेरों का क्रम
ज्योति अंधेरों के दम से चमकी
अंधेरों ने ज्योति से नाम पाया
मौन मुखर की भला क्या लडाई
मौन तो ज्योति है
उसकी शक्ति समझ ,सबने शीश झुकाया ॥
क्या भूलूं क्या याद करूँ ------------
Monday, July 13, 2009
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