सभी ब्लॉग साथिओं को मेरा अभिनन्दन । विजय दशमी ,कड़वा-चौथ की सबको मुबारक। aआज सूरज जब ढल रहा था और मुझे बहुत भा रहा था की अचानक मुझसे बात करने लगा ,सोच यह बातचीत आपको भी सुना दूँ ------
कभी छत्त पर खडे हो कर
ढलते सूरज की लाली को देखा है
मौन हो उसको सुना ?
वह तुमसे कुछ बोलती है
सारे दिन के दिए प्रकाश का हिसाब मांगती है
क्या पहना क्या ओदा
क्या संवारा ,क्या बरबाद किया
क्या पाया और कहाँ गवांया
लिया कितना और दिया क्या
यह जिंदगी दिए वक्त का जवाब मांगती है ।
यह सारे दिन के दिए प्रकाश का हिसाब मांगती है ॥
यह सोनेचांदी के सिक्कों
की कोई गिनती नहीं
नहीं बैंक बलेंस की शीत
वक्त का यह मापदंड ,तुम्हारे
समय की रेत पर छोडे क़दमों की गहराई नापती है ,
यह जिंदगी दिए वक्त का जवाब मांगती है ।
सारे दिन के दिए प्रकाश का हिसाब मांगती है ॥
तुम्हारे कपड़े गहनों की
गिनती कीमत कल क्या होगी
कपडों के रंग ढंग बदले होंगे
रुपये की कीमत न जाने कहाँ होगी
आनेवाली पीढी तुम्हारी उपलब्धियों को आंकती है ,
यह जिंदगी दिए वक्त का जवाब मांगती है ।
सारे दिन के दिए प्रकाश का हिसाब मांगती है ॥
तुम भले ही इसको मत सुनो
चादर ओढ़ सो जायो
यह सारी रात जाग कर
तुम्हारी बुनी चादर के तार तार खोलती है
तुम्हारे ही धागों से तुम्हारी सुबह सवांरती है
यह ज़िन्दगी दिए वक्त का हिसाब मांगती है ।
सारे दिन के दिए प्रकाश का हिसाब मांगती है ॥
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जिंदगी का हिसाब आपने न सिर्फ अच्छे से समझा है, बल्कि उसे बखूबी बयां भी किया है।
ReplyDeleteकरवाचौथ और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।
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बोटी-बोटी जिस्म नुचवाना कैसा लगता होगा?
यह सोनेचांदी के सिक्कों
ReplyDeleteकी कोई गिनती नहीं
नहीं बैंक बलेंस की शीत
वक्त का यह मापदंड ,तुम्हारे
समय की रेत पर छोडे क़दमों की गहराई नापती है ,
यह जिंदगी दिए वक्त का जवाब मांगती है ।
सारे दिन के दिए प्रकाश का हिसाब मांगती है ॥
Kaphi arthpurn aur sundar abhuvyakti.
तुम भले ही इसको मत सुनो
ReplyDeleteचादर ओढ़ सो जायो
यह सारी रात जाग कर
तुम्हारी बुनी चादर के तार तार खोलती है
तुम्हारे ही धागों से तुम्हारी सुबह सवांरती है
यह ज़िन्दगी दिए वक्त का हिसाब मांगती है ।
सारे दिन के दिए प्रकाश का हिसाब मांगती है ॥
बढ़िया भाव, बढ़िया प्रस्तुति.
हार्दिक बधाई.
पर हाँ, आज का इन्सान हिसाब-किताब में तब खुद को कमज़ोर दिखाने का अभिनय करता है, जब उससे हिसाब-किताब माँगा जाये और उसकी देनदारियां निकल रही हो............
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
यह ज़िन्दगी दिए वक्त का हिसाब मांगती है । यही सच है ।
ReplyDeleteयह जिंदगी दिए वक्त का जवाब मांगती है ।
ReplyDeleteसारे दिन के दिए प्रकाश का हिसाब मांगती है......
प्रभावी रचना है ....... जीवन के पहलुओं को छूती ........
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ
सुंदर कविता व भाव ,ज़िंदगी जिंदादिली का नाम है, क्या हिसाब रखें ?
ReplyDeleteआपके ब्लाग पर आकर मन प्रसन्न हो गया
ReplyDelete--
तुम्हारे ही धागों से तुम्हारी सुबह संवारती है
यह जिन्दगी दिए वक्त का हिसाब मांगती है
--इन पंक्तियों को पढ़कर तो यही कह सकता हूँ कि
जितनी थकान थी उतनी ताज़गी मिली
दिन भर अंधेरे में था यहाँ रोशनी मिली