प्रभु की दी इस ,जीवन यात्रा में
आते हैं कई पड़ाव
कभी यहाँ कभी वहां
कहीं धूपकहीं छावं
हमें सब हाल में खुश रहना है ।
कभी वतन की माटी की महक
कभी अपनों से दूर होने का विषाद
यह तो उसकी सृष्टि के
सुख दुखों का वाद विवाद
ले बीच की राह सम रहना है ।
यह भी खूब सजी महफिल
सिलसिला सुनने और सुनाने का
एक मौन आह्वान प्रेम का
एक मूक आन्दोलन स्नेह का
जिसे बस चलते ही रहना है ।
इसमें न शोर ऊंची आवाजों का
न भीड़ न रास्ते बंद हैं
खुला आसमान फैली ज़मी
सब बोलने को स्वतंत्र हैं
जब जी चाहे सुन लेना है
न देश की सीमायों और
वीजायों के बंधन
न संपादकों की किट किट
जब चाहो कर लो अभिनन्दन
जी चाहे तो मौन हो जाना है ।
विज्ञानं की इन खोजों में
जब इंसान की भावनाए मिल जाएँगी
बनेगी तब नई दुनिया
जिसमे देश धर्म की सीमायें मिट जाएँगी
इस कारवां से जुड़ते चले जाना है ।
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विज्ञानं की इन खोजों में
ReplyDeleteजब इंसान की भावनाए मिल जाएँगी
बनेगी तब नई दुनिया
नई दुनिया की यह परिकल्पना अच्छी लगी.
रचना बहुत अच्छी
हमें सब हाल में खुश रहना है ।
ReplyDeleteकभी वतन की माटी की महक
कभी अपनों से दूर होने का विषाद
यह तो उसकी सृष्टि के
सुख दुखों का वाद विवाद
ले बीच की राह सम रहना है ।
अति उत्तम सन्देश.................
कविता बहुत ही बढ़िया है.
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
अच्छी कविता ! देश-विदेश की सीमाओं से परे नई तकनीक से विश्व को जोड़ने का सुंदर भाव व्यक्त हुआ है ।
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