पुरानी डायरी के पन्नो से -------------
सपने जीवन में कई रंग भरते है ,
सपने सच हो जायें तो इससे भला क्या है
और अगर सच न हुए तो रोना क्यूँ
सपने आख़िर सपने ही तो हैं ।
अपने जीवन में प्यार के रंग भरते हैं ,
प्यार दो और प्यार मिले ,फिर कहना ही क्या है
अगर नफरत भरे झोली में तो रोना क्यूँ
कहने को फिर भी कोई अपने तो हैं ॥
संतों के दर्शन जीवन में अपनी जगह रखते हैं
यों बिना प्रयास के कभी मिल जाएँ तो कहना क्या है
न मिलें तो भी चाह बनाये रखने में बुरा क्या
मिलें तो जीवन का रुख ही बदल देते हैं ।
पूजन जीवन में आनंद के रंग भरते हैं
गुरु मिले तो साधना का पथ मुश्किल हो कितना
चलते रहो मंजिल दुसाध्य हो क्यूँ न
गुरु भव सागर से पार करवा ही देते हैं ॥
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wow! bahut khoob, parhne ko mila is kavita me... shukriya.
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत रचना है .............
ReplyDeleteचलते रहो मंजिल दुसाध्य हो क्यूँ न
गुरु भव सागर से पार करवा ही देते हैं ॥
काफी प्रेरक और उर्जा से भरती पंक्तियाँ......अतिसुन्दर
बहुत सुन्दर विचार!
ReplyDeleteखूबसूरत रचना है बधाई
ReplyDeleteगुरु मिले तो साधना का पथ मुश्किल हो कितना
ReplyDeleteचलते रहो मंजिल दुसाध्य हो क्यूँ न
गुरु भव सागर से पार करवा ही देते
Sach kaha aapne.Shubkamnayen.
बढ़िया सन्देश देती आपकी यह रचना पसंद आई.
ReplyDeleteहार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
बहुत अच्छी और सुविचारों से सुसज्जित कविता जीवन संदेश देती है। अखिरी पंक्तियाँ तो जैसे जान हैं :-
ReplyDeleteगुरु मिले तो साधना का पथ मुश्किल हो कितना
चलते रहो मंजिल दुसाध्य हो क्यूँ न
गुरु भव सागर से पार करवा ही देते हैं ॥
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी