आज बहुत पुरानी डायरी हाथ आई ,पुरानी वह कवितायें तो फिर कभी सुनाऊँ गी ,पर उसे पढने के बाद जो लिखा वह सुनाती हूँ ------
ऐय ज़िन्दगी बस अब और सवाल न पूछ
हम क्यूँ भटके ,समय गवाया क्यूँ
पीछे मुड़ कर अपने क़दमों को देख
सोच ज़रा
सफर कितनी दूर का कर आया तू ?
तेरे खोने पाने ,हंसने रोने की गिनती
की फुर्सत किसे ,वह तेरी कमाई थी
तू जिमेवार अपने कर्मों का
वह तेरी ,तेरी अपनी लड़ाई थी
मनन कर
जीवन से सीखा क्या ,क्या सिखा आया कुछ ?
आज जो किया ,कमाया है
कल मौज से खर्चेगा
जिस लक्ष की राह पर चला है
वहीं जा कर कल पहुंचेगा
पहचान कर
दूसरों को दिया क्या ,ख़ुद क्या लाया तू ?
कभी समझ अगर बोध से
तो जीवन सुंदर सरल कहानी है
अभिनय भी तेरा है
तेरी कहानी तेरी अपनी ज़ुबानी है
गौर कर
अभिनय का आनंद कितना ले आया तू ?
चला कितना ,कोई महत्त्व नहीं
मगर चला कहाँ तक ,जरूरी है
पीछे छोड़ा कचरा कितना
जोड़ गुणों का जो खजाना ,ज़रूरी है
चिंतन कर
क्या फिर लौट आने की तयारी कर आया तू ?
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चला कितना ,कोई महत्त्व नहीं
ReplyDeleteमगर चला कहाँ तक ,जरूरी है
पीछे छोड़ा कचरा कितना
जोड़ गुणों का जो खजाना ,ज़रूरी है
चिंतन कर
क्या फिर लौट आने की तयारी कर आया तू ?
prem jee laajavaab abhivyakti hai shubhakaamanaayen
चला कितना ,कोई महत्त्व नहीं
ReplyDeleteमगर चला कहाँ तक ,जरूरी है
पीछे छोड़ा कचरा कितना
जोड़ गुणों का जो खजाना ,ज़रूरी है
चिंतन कर
क्या फिर लौट आने की तयारी कर आया तू ...
बहुत ही आध्यात्मिक स्तर पर लिखी है ये रचना अपने .......... जीवन में कोई ना कोई मोड़ ऐसा आता है जब इंसान अपने अतीत को देखता है ... अच्छी रचना है .....
Is arthpurn rachna ke liye badhai.
ReplyDelete... प्रभावशाली रचना !!!!
ReplyDeleteअच्छा लगा यह चिंतन
ReplyDeleteकभी समझ अगर बोध से
ReplyDeleteतो जीवन सुंदर सरल कहानी है
अभिनय भी तेरा है
तेरी कहानी तेरी अपनी ज़ुबानी है
गौर कर
अभिनय का आनंद कितना ले आया तू ?
----आपकी कलम ने इस दर्शन को अच्छे से परिभाषित किया है।
चला कितना ,कोई महत्त्व नहीं
ReplyDeleteमगर चला कहाँ तक ,जरूरी है
पीछे छोड़ा कचरा कितना
जोड़ गुणों का जो खजाना ,ज़रूरी है
चिंतन कर
क्या फिर लौट आने की तयारी कर आया तू ?
वाह प्रेम जी ....बहुत गहरी बात कह दी ...'' कहाँ तक चला ''..जब इसका हिसाब करने जाओ तो कुछ हाथ नहीं आता .....लौट आने के द्वार तो यहीं बंद कर जाते हैं हम ......प्रेरित करती कविता .....!!
जिसकी हाथों में कलम की उजास हो
ReplyDeleteजिसके ह्रदय में भावनाओं का बवंडर हो
वो खुद-ब- खुद जीवन के अर्थ पा लेता है
चला कितना ,कोई महत्त्व नहीं
ReplyDeleteमगर चला कहाँ तक ,जरूरी है
पीछे छोड़ा कचरा कितना
जोड़ गुणों का जो खजाना ,ज़रूरी है
चिंतन कर
क्या फिर लौट आने की तयारी कर आया तू ?
Bade dinon baad aapke blog pe aayee aur jeevan ka nichod padh liya! Phir ekbaar shaant sarowar ke kinare baithne kaa abhaas hua!
Nav varsh ki dher sari shubkamnayen.
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