बंधन जब जुड़ते हैं
तो खुशी की एक लहर सी
ज़िन्दगी गुनगुनाती एक साज़ होती है
मानो चारो और फूल खिल गए हों
ओर झूमता हो मन
कि सपने सूहाने सच ही होंगे ॥
बंधन जब टूट ते हैं
तो एक चरमराती
दर्द से चीखती सी आवाज़ होती है
मानो कांच टूटे हों ,बिखर गए हों
ओर रोता हो मन
कि यह अब क्या जुड़ेगें ॥
मगर कभी बंधन खुलते हैं
तो शमशान के मौन की तरह
निशब्द चीत्कार करती आवाज़ होती है
न टूटने का दर्द न जुड़ ने की आस
कि शांत हो जाता है मन
अब किसी से क्या मिलेगें ॥
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इस अद्भुत रचना की प्रशंशा के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं...आप बहुत ही अच्छा लिखती हैं...बधाई...
ReplyDeleteनीरज
bahut sundar
ReplyDeleteबहुत सुन्दर व्याख्या--बंधन की।चाहे जुडते बंधन हों,चाहे टूटते, चाहे खुलते---प्रेम सभी में अन्तर्निहित होता है।
ReplyDeleterishton, bandhanon के tootne और judne को बहुत ही adhbudh तरीके से utaara है आपने इस रचना में......... बहुत khoob
ReplyDeleteलगता है मानो एक संथ ,शांत धीर गंभीर व्यक्ति अपने जीवन का गुर बता रहा है ..और हम एक विशाल सरोवर के किनारे बैठ, उसे महसूस कर रहे हों...
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