ओ निराशायो की काली घटायों
जायो कहीं बियाबान में जा बरसो
तुम यहाँ घिरी उमड़ी
बस इसी में संतुष्ट हो जायो ,
ओ निराशयों की काली घटायों ---
यहाँ मेरे गुरु की कृपा बरसती है
तुम्हें कोई थाह न मिलेगी
तुम कहीं दूर जा निकलो
अपना अस्तित्व तो बचाओ
ओ निराशायो --------
माना की यह मन अस्थिर है
दुखी है थोड़ा अशांत भी
यह मेरे प्रभु की परीक्षाएं
यों न उलझो ,ज़ोर न आजमाओ
ओ निराशायो -----------
यह मन आखिर मन ही तो है
कभी भटकेगा ,रोयेगा भी कभी
यह सब तो जीवन की सीडियां
तुम यों न गरजो न हमको डरायो
ओ निराशायो
सोना चमकेगा जब आग से निकलेगा
साधना किसी आग से कम नहीं
झुलसेगा जो साधक , व् ही दमकेगा
जायो ,जायो तुम यह आग न बुझायो
ओ निराशायो की काली घटायो ॥
Monday, August 17, 2009
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माना की यह मन अस्थिर है
ReplyDeleteदुखी है थोड़ा अशांत भी
यह मेरे प्रभु की परीक्षाएं
यों न उलझो
SACH KAHA.....GURU YA PRABHU JAB IMTIHAAM LETAA HAI TO MAN ASTHIR HO JAATA HAI PAR INSAAN SAMAJHTA NAHI HAI KI YE USKI CHAAL HAI......VO JAANTA HAI JO KATHIN PAL KO JEE LETAA HAI VAHI NIKHAR KAR AATA HAI...... SUNDAR RACHNA HAI BAHOOT HI..
झुलसेगा जो साधक , व् ही दमकेगा
ReplyDeleteवाह...जीवन में सकारात्मकता का पाठ पढाती आपकी ये रचना कमाल की है...बधाई...
नीरज
जब ,जब आपकी रचनाएँ पढ़ती हूँ , लगता है ,जैसे एक साध्वी बड़ी शांती से ,प्यारसे कुछ समझा रही है ..सुन लेना चाहिए ..एक गहरी झील, एक शांत महासागर किनारे बैठ ने का अनुभव मिलता है..यहाँ से लौटने का मन नही करता..
ReplyDeletehttp://shamasansmaran.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
( Darasal ye kavita blog updated rahta hai)
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
जीवन के सत्य को चरितार्थ करती भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteबधाई.
bahut hi achi kavita hai..
ReplyDeleteओ निराशायो की काली घटायों...
ओ निराशयों की काली घतायों?