Friday, August 28, 2009

उम्र का तकाज़ा

अजीब बात है
चोट है चोट का दर्द भी है
पर होता वह एहसास नहीं ।
वक्त वक्त की बात है
शीत लहर है हवा सर्द भीहै
मगर पहले सा आभास नहीं ।
रिश्ते नाते हैं
प्यार वही हैनफरत की गर्द वही है
अब भावनायों का उठता तूफ़ान नहीं ।
वही दिन वही रात है
साँस चल रही धड़कन भी है
पर जीना का वह उल्लास नहीं ॥

Thursday, August 27, 2009

तुम कहाँ हो

यह जीवन अपने ही कर्मों का खजाना
वक्त बलवान है उस से डर कर रहना
भाग्य का ज़ोर है सब का यह कहना
फिर तुम कहाँ हो -तुम्हारी दया क्या है ?

दुःख सुख की यह सारी लीला
तीन गुणों से बना यह संसार है
उस में भला कैसे सम हो रहना
फिर तुम कहाँ हो -तुम्हारी प्रार्थना क्या है ?

सच है प्रार्थना ,प्रार्थना है
भीख नहीं ,वोह प्यार है
पर दर्द को भला कैसे सहना
फिर तुम कहाँ हो-तुम्हारी कृपा क्या है ?

बोध कहाँ से कैसे आए
हम अपनी अज्ञानता से बेजार हुए
तुम्हारी सृष्टि के नियम समझ न आए
फिर तुम कहाँ हो -तुम्हारा राज़ क्या है ?

Monday, August 17, 2009

ओ निराशयों की काली घतायों --

ओ निराशायो की काली घटायों
जायो कहीं बियाबान में जा बरसो
तुम यहाँ घिरी उमड़ी
बस इसी में संतुष्ट हो जायो ,

ओ निराशयों की काली घटायों ---

यहाँ मेरे गुरु की कृपा बरसती है
तुम्हें कोई थाह न मिलेगी
तुम कहीं दूर जा निकलो
अपना अस्तित्व तो बचाओ
ओ निराशायो --------

माना की यह मन अस्थिर है
दुखी है थोड़ा अशांत भी
यह मेरे प्रभु की परीक्षाएं
यों न उलझो ,ज़ोर न आजमाओ
ओ निराशायो -----------

यह मन आखिर मन ही तो है
कभी भटकेगा ,रोयेगा भी कभी
यह सब तो जीवन की सीडियां
तुम यों न गरजो न हमको डरायो
ओ निराशायो


सोना चमकेगा जब आग से निकलेगा
साधना किसी आग से कम नहीं
झुलसेगा जो साधक , व् ही दमकेगा
जायो ,जायो तुम यह आग न बुझायो

ओ निराशायो की काली घटायो ॥

Wednesday, August 12, 2009

पुनीत के लिए

करो तुसानह शुभ हेतु: इश्वरी ,शुभानी भद्राणि भी हन्तु चापद: ॥

मेरा साया मुझ पर हँसता है

रात के वीराने में ,मन होता है उदास
जी चाहता है ,जी भर के रो लूँ
मगर रो नहीं पाती हूँ __
कि मेरा साया मुझ पर हँसता है ।
जीवन की यात्रा के दर्शन मंथन में
सीखा सुख दुःख एक समान
फिर यह रोने की चाह
क्या कोई साधक की पहचान
कि मेरा साया मुझ पर हँसता है

कहीं दूर अंधेरे मोड़ के भ्रम से
जब मन डरता है
पर घबरा नहीं पाती हूँ
कि मेरा साया मुझ पर हँसता है ।
जिस कल पर तेरा ज़ोर नहीं
आने वाले पल का ज्ञान नहीं ,भान नहीं
उसको लेकर शंकित होना
बोध का तो नाम नहीं
कि मेरा साया मुझ पर हँसता है

मन सपनों में कभी खोये ,भर जाता है उल्लास
जी चाहता है ,जी भर के झूमूं
मगर झूम नहीं पाती हूँ
कि मेरा साया मुझ पर हँसता है
ढलती संध्या की इस काया में
गति कहाँ ,अवरोध कहाँ
स्नेह की बहती इस नदिया में
भला पाना क्या और खोना कहाँ
कि मेरा साया मुझ पर हँसता है ॥

Tuesday, August 4, 2009

बंधन

बंधन जब जुड़ते हैं
तो खुशी की एक लहर सी
ज़िन्दगी गुनगुनाती एक साज़ होती है
मानो चारो और फूल खिल गए हों
ओर झूमता हो मन
कि सपने सूहाने सच ही होंगे ॥
बंधन जब टूट ते हैं
तो एक चरमराती
दर्द से चीखती सी आवाज़ होती है
मानो कांच टूटे हों ,बिखर गए हों
ओर रोता हो मन
कि यह अब क्या जुड़ेगें ॥
मगर कभी बंधन खुलते हैं
तो शमशान के मौन की तरह
निशब्द चीत्कार करती आवाज़ होती है
न टूटने का दर्द न जुड़ ने की आस
कि शांत हो जाता है मन
अब किसी से क्या मिलेगें ॥