सारा जीवन क्या किया ----?
मकड़ी की तरह
जाल बुने हैं -----
आँखें बंद करती हूँ
तो क्या देखती हूँ ----
अनगिनत जाल हैं
रेशमी धागों के
रंग बिरंगे जाल
इन्दर धनुषी जाल
करूँ तो करूँ क्या
सब मेरे ही तो तो बुने है ,
हिलूं तो हिलूं कैंसे
उलझ जायेंगे या फिर
डरती हूँ टूट जायेंगे
सोच तो सोच जरा
इस नश्वर जग में
स्थिर क्या -------
यह दर क्यूँ और किस से
आँखे बंद कर
गहरे उत्तर ,अपनी दुनिया में
वहां शांति का सागर बहता है ॥
Tuesday, October 5, 2010
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सारा जीवन क्या किया ----?
ReplyDeleteमकड़ी की तरह
जाल बुने हैं -----
sochne par majboor kar diya aapne.sach hai,zale bunne ke alawa aur kya kiya?
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
ReplyDeleteसच कहा है अंततः अपने अंदर ही शांति मिलती है ... तृष्णा के मॅकड़ जाल में आशाएँ उलझती चली जाती हैं ... बहुत आध्यात्मिक लिखा है ...
ReplyDeletebahut hi achhi rachna
ReplyDeleteआपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
..इन्दर धनुषी जाल
ReplyDeleteकरूँ तो करूँ क्या
सब मेरे ही तो तो बुने है..
..यही उलझन है..इसी को सुलझाना है।
दशहरा की ढेर सारी शुभकामनाएँ!!
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