Monday, November 9, 2009

आज बहुत पुरानी डायरी हाथ आई ,पुरानी वह कवितायें तो फिर कभी सुनाऊँ गी ,पर उसे पढने के बाद जो लिखा वह सुनाती हूँ ------
ऐय ज़िन्दगी बस अब और सवाल न पूछ
हम क्यूँ भटके ,समय गवाया क्यूँ
पीछे मुड़ कर अपने क़दमों को देख
सोच ज़रा
सफर कितनी दूर का कर आया तू ?

तेरे खोने पाने ,हंसने रोने की गिनती
की फुर्सत किसे ,वह तेरी कमाई थी
तू जिमेवार अपने कर्मों का
वह तेरी ,तेरी अपनी लड़ाई थी
मनन कर
जीवन से सीखा क्या ,क्या सिखा आया कुछ ?

आज जो किया ,कमाया है
कल मौज से खर्चेगा
जिस लक्ष की राह पर चला है
वहीं जा कर कल पहुंचेगा
पहचान कर
दूसरों को दिया क्या ,ख़ुद क्या लाया तू ?

कभी समझ अगर बोध से
तो जीवन सुंदर सरल कहानी है
अभिनय भी तेरा है
तेरी कहानी तेरी अपनी ज़ुबानी है
गौर कर
अभिनय का आनंद कितना ले आया तू ?

चला कितना ,कोई महत्त्व नहीं
मगर चला कहाँ तक ,जरूरी है
पीछे छोड़ा कचरा कितना
जोड़ गुणों का जो खजाना ,ज़रूरी है
चिंतन कर
क्या फिर लौट आने की तयारी कर आया तू ?