Sunday, September 20, 2015

मौंन

Tuesday, November 9, 2010

प्रकाश

मन से संचित कर भाव
शुभकामनायों की यह भेंट लाई हूँ ।
शब्दों के तेल से मार्जित कर
मंगल्कामनायों के धूप दीप लाइ हूँ ।
प्रभु करे -हम सब के जीवन में
प्रकाश के दिए जलते रहें ,जलते रहें ।
अनंत प्रार्थनायों के साथ
सब को शुभ दीपावली ।

Tuesday, October 5, 2010

इन्दरधनुषी जाल

सारा जीवन क्या किया ----?
मकड़ी की तरह
जाल बुने हैं -----
आँखें बंद करती हूँ
तो क्या देखती हूँ ----
अनगिनत जाल हैं
रेशमी धागों के
रंग बिरंगे जाल
इन्दर धनुषी जाल
करूँ तो करूँ क्या
सब मेरे ही तो तो बुने है ,
हिलूं तो हिलूं कैंसे
उलझ जायेंगे या फिर
डरती हूँ टूट जायेंगे
सोच तो सोच जरा
इस नश्वर जग में
स्थिर क्या -------
यह दर क्यूँ और किस से
आँखे बंद कर
गहरे उत्तर ,अपनी दुनिया में
वहां शांति का सागर बहता है ॥

Friday, September 17, 2010

बेनाम भाव

अध्यातम का दंभ
इच्छायों की गठरी
कर्मों की काली रातें
राह के पत्थर
कदम बढ़ें तो कैंसे बढ़ें ।
एक और मूक अँधियारा
बड़े शहरों की
बड़ी बड़ी बतियों
से चौंधियाई आँखें
भला कुछ देखें तो कैंसे देखें ।
जग का इतना शोर
त्राहि त्राहि करता जन मानस
भीतर से अनबुझी
प्यास की बगावत
किसी की भला सुने तो कैंसे सुने ।
यह कोई सत्य या
सत्य से भागने का बहाना
या मन की कोई चाल
इस मन से ही बेगाने
मन की उलझन सुलझे तो कैंसे सुलझे ॥

Tuesday, August 24, 2010

सब कविता प्रेमियों को मेरा स्नेह पूर्ण अभिनन्दन । बहुत दिनों बाद एक छोटी सी कोशिश ------- कभी ऐसा भी होता है
हम जीवन नहीं जीते
जीवन हमें जीता है ।
और तब यह वक्त
हमें कठपुतली सा
नाच नचाता है ।
जब हम जागते हैं
मानों एक लम्बा
सपना देखा हो ।
वर्षों बीत जाते हैं
हम वहीँ खड़े होते हैं
जहाँ पहले खड़े थे ।
वही प्रशन हाथों में
लेकर मूक से खड़े हैं
मैं आखिर हूँ कौन ?

Saturday, January 23, 2010

मौन

दुनिया की यह हलचल
अब शोर सा लगता है
भीतर से आ रही आवाज़ का
स्वर मधुर सा लगता है ।
मुझे मेरे मौन में खो जाने दो
कि बज रहा वहां सितार बड़ी लय से
मुझे आवाज़ न दो
कोई कुछ कह रहा बात मेरी रूह की तह से ।
तुम्हें क्या समझाऊँ क्या सुनाऊँ
कोई स्वर नहीं कोई भाषा नहीं इसकी
यह तो एहसास है ,अनुभूति है
यों आया और यों गया कोई पकड़ नहीं इसकी ॥
२५ दिसम्बर कि पोस्ट भी देखें

Thursday, January 7, 2010

नव वर्ष की सबको हार्दिक शुभकामनायें ,प्रभु कृपा आने वाले हर दिन को मंगलमय करे ।
अपने मन से एक अनुरोध ------
जाग मनवा जाग तू सोया सोया जाग
नए वर्ष की नई किरण का सुन आह्वान
जाग मनवा जाग --------
इस जग का तू मुसाफिर ही तो है
अपनी यात्रा की मंजिल को पहचान
जाग मनवा जाग --------
कहीं से आया ,न जाने कहाँ जाना
आज के जीवन की गति को पहचान
जाग मनवा जाग ----------
यों ही खा पीकर पशुवत चला जाएगा
या कभी चिंतन को भी देगा मान
जाग मनवा जाग ---------
आख़िर मैं हूँ कौन ,क्यूँ आया यहाँ
मानव है ,इन प्रश्नों पर दे कुछ ध्यान
जाग मनवा जाग -----------
जग क्या करे क्या सोचे तुझे क्या लेना
कर प्रयोग अपने विवेक का ओ बुद्धिमान
जाग मनवा जाग -----------
जिस दिन जाग गया तू बन्दे
हर सुबह नई सुबह देगी नई पहचान
जाग मनवा जाग तू सोया सोया जाग ॥