Tuesday, October 5, 2010

इन्दरधनुषी जाल

सारा जीवन क्या किया ----?
मकड़ी की तरह
जाल बुने हैं -----
आँखें बंद करती हूँ
तो क्या देखती हूँ ----
अनगिनत जाल हैं
रेशमी धागों के
रंग बिरंगे जाल
इन्दर धनुषी जाल
करूँ तो करूँ क्या
सब मेरे ही तो तो बुने है ,
हिलूं तो हिलूं कैंसे
उलझ जायेंगे या फिर
डरती हूँ टूट जायेंगे
सोच तो सोच जरा
इस नश्वर जग में
स्थिर क्या -------
यह दर क्यूँ और किस से
आँखे बंद कर
गहरे उत्तर ,अपनी दुनिया में
वहां शांति का सागर बहता है ॥