सब कविता प्रेमियों को मेरा स्नेह पूर्ण अभिनन्दन । बहुत दिनों बाद एक छोटी सी कोशिश ------- कभी ऐसा भी होता है
हम जीवन नहीं जीते
जीवन हमें जीता है ।
और तब यह वक्त
हमें कठपुतली सा
नाच नचाता है ।
जब हम जागते हैं
मानों एक लम्बा
सपना देखा हो ।
वर्षों बीत जाते हैं
हम वहीँ खड़े होते हैं
जहाँ पहले खड़े थे ।
वही प्रशन हाथों में
लेकर मूक से खड़े हैं
मैं आखिर हूँ कौन ?
हम जीवन नहीं जीते
जीवन हमें जीता है ।
और तब यह वक्त
हमें कठपुतली सा
नाच नचाता है ।
जब हम जागते हैं
मानों एक लम्बा
सपना देखा हो ।
वर्षों बीत जाते हैं
हम वहीँ खड़े होते हैं
जहाँ पहले खड़े थे ।
वही प्रशन हाथों में
लेकर मूक से खड़े हैं
मैं आखिर हूँ कौन ?
हम जीवन नहीं जीते
ReplyDeleteजीवन हमें जीता है ।
जी नहीं प्रेम जी ....
औरतें जीवन जीती ही कहाँ है ...
बस जीवन काटती भर हैं ....
वे ज़िन्दगी भर आईने के पास खड़ी यही तो पूछती रहती हैं ....''कौन है तू''
ज्यादा कहूँगी तो फिर आँखें नम हो जाएँगी ....
आपने सही कहा ...अब दर्द सकूँ देता है .....!!
सच कहा है ... जीवन वक़्त के हाथों कठपुतली सा नाचता है ....
ReplyDeleteएक पूरा दर्शन निचोड़ लिया आपने इस कविता में.अर्थपूर्ण और सार्थक रचना.शुभकामनायें.
ReplyDeletenice to see you back on your blog. hoping for more.
ReplyDeletemanjul