Saturday, January 23, 2010

मौन

दुनिया की यह हलचल
अब शोर सा लगता है
भीतर से आ रही आवाज़ का
स्वर मधुर सा लगता है ।
मुझे मेरे मौन में खो जाने दो
कि बज रहा वहां सितार बड़ी लय से
मुझे आवाज़ न दो
कोई कुछ कह रहा बात मेरी रूह की तह से ।
तुम्हें क्या समझाऊँ क्या सुनाऊँ
कोई स्वर नहीं कोई भाषा नहीं इसकी
यह तो एहसास है ,अनुभूति है
यों आया और यों गया कोई पकड़ नहीं इसकी ॥
२५ दिसम्बर कि पोस्ट भी देखें

13 comments:

  1. बहुत अच्छा लिखती हैं आप.
    द्वन्द को खूब बयाँ किया है

    ReplyDelete
  2. मुझे मेरे मौन में खो जाने दो
    कि बज रहा वहां सितार बड़ी लय से
    मुझे आवाज़ न दो ...

    खुद की आवाज़ अगर सुनाई दे तो इससे पड़ा आनंद नही ......... बहुत सुंदर भा से पिरोया है इस रचना को ........

    ReplyDelete
  3. वाह! आध्यात्म में डूबा चिंतन.
    ..अच्छा लगा पढ़कर.

    ReplyDelete
  4. दुनिया की यह हलचल
    अब शोर सा लगता है
    भीतर से आ रही आवाज़ का
    स्वर मधुर सा लगता है ।
    मुझे मेरे मौन में खो जाने दो
    कि बज रहा वहां सितार बड़ी लय से
    मुझे आवाज़ न दो
    Phir wahee ehsaas...jheel ke kinare baithe hon jaise, aur tarannum sunayi de raha ho...!

    ReplyDelete
  5. insaan zindagi mein sabse jyada apne saath rehta hai... fir bhi apne liye sabse kam samay nikaal paata hai.. jevan ke isi katu satya ko bahaut achha likhah ai aapne.. :)

    rest.. m too young to say nething further..
    bahaut achha laga manabhaavo ko is tarah bayan karna.. :)

    ReplyDelete
  6. कोई कुछ कह रहा बात मेरी रूह की तह से ।
    तुम्हें क्या समझाऊँ क्या सुनाऊँ
    कोई स्वर नहीं कोई भाषा नहीं इसकी
    यह तो एहसास है ,अनुभूति है
    यों आया और यों गया कोई पकड़ नहीं इसकी ॥
    Phir vahi wishal sarowarki neeravta...wahi sanjeedgee...jo khamosh kar deti hai!

    ReplyDelete
  7. लिखना क्यों बंद कर दिया...?

    ReplyDelete
  8. आपकी इस कविता को पढ़ कर पावलो नरूदा की कविता "Keeping Quiet" की याद आती हैं.

    ReplyDelete