Saturday, October 31, 2009

एक ख्याल

जो यह दर्द न होता
कष्ट न होते
कोई दुःख न होता
तो क्या होता
इन्सान इक माटी का पुतला होता ।

फिर अपने भी कहाँ होते
उनके दिए ज़ख्म भी न होते
आंसूं भी न होते
तो क्या होता
इन्सान पागल सा हरदम हँसता होता ।

समाज के बनाये यह फ़र्ज़ न होते
सृष्टि के अपने नियम न होते
इन्सान अपने कर्मों से
बंधा न होता
हर कोई अपने को खुदा समझता होता ।

फिर प्यार कहाँ होता
नफरत का संसार कहाँ होता
अनुभव भी न होते
तो क्या होता
इन्सान बस साँस लेती मूर्त होता ।

Sunday, October 25, 2009

बेचैन होता कौन

वक्त की चालों से दुखी कौन
जोवक्त की ताकत को समझता नहीं
इधर से उधर बेचैनहोता कौन
जो अपने अंतस को ही समझता नहीं ।

ज़िन्दगी भर पूर जीने का नाम
जो मिला है वह तेरा है
जो नहीं मिला वह तेरा था ही नहीं
खोने पाने से क्यूँ ऊपर तू उठता नहीं ।

इस षण भंगुर जगत का पाना खोना
उतना ही जितना उसे तू देख ले
आँखे बंद कर ,अंधकार की ओरसे
खोल प्रकाश में सब कुछ चमकता यहीं ।

आँखे खोल ,उनकी ओरडेख
जिन्होनें कभी कुछ पाया ही नहीं
और तो और पेट भर कभी खाया ही नहीं
उनसे नज़र मिला ,देख प्रभु कैंसे दीखता नहीं ।

बाहें फैलाये जग बुला रहा है
कान तो खोल ,आवाज़ तो सुन
आँखें तो खोल ,पुकार तो सुन
सच्चा साधक तो वक्त के आगे झुकता नहीं ।

Saturday, October 24, 2009

वक्त की चालों से दुखी कौन
जो वक्त की ताकत को समझता नहीं
इधर से उधर बेचैन कौन

जो अपने अंतस को ही समझता नहीं


ज़िन्दगी भरपूर जीने का नाम

जो मिला है वह तेरा है

जो नहीं मिला वह तेरा था ही नहीं

खोने पाने से क्यूँ ऊपर तू उठता नहीं


इस षण भंगुर जगत का पाना खोना

उतना ही जितना उसे तू देख ले
आँखें बंद कर अंधकार से
खोल प्रकाश में सब कुछ चमकता यहीं


आँखें खोल ,उनको देख
जिन्होंने कभी कुछ पाया ही नहीं

और तो और पेट भरकभी खाया ही नहीं

उन से नज़र मिला ,देख प्रभु कैंसे दीखता नहीं


बाहें फैला ,ये जग बुला रहा है

कान तो खोल ,आवाज़ तो सुन

Tuesday, October 6, 2009

सभी ब्लॉग साथिओं को मेरा अभिनन्दन । विजय दशमी ,कड़वा-चौथ की सबको मुबारक। aआज सूरज जब ढल रहा था और मुझे बहुत भा रहा था की अचानक मुझसे बात करने लगा ,सोच यह बातचीत आपको भी सुना दूँ ------
कभी छत्त पर खडे हो कर
ढलते सूरज की लाली को देखा है
मौन हो उसको सुना ?
वह तुमसे कुछ बोलती है
सारे दिन के दिए प्रकाश का हिसाब मांगती है

क्या पहना क्या ओदा
क्या संवारा ,क्या बरबाद किया
क्या पाया और कहाँ गवांया
लिया कितना और दिया क्या
यह जिंदगी दिए वक्त का जवाब मांगती है ।
यह सारे दिन के दिए प्रकाश का हिसाब मांगती है ॥

यह सोनेचांदी के सिक्कों
की कोई गिनती नहीं
नहीं बैंक बलेंस की शीत
वक्त का यह मापदंड ,तुम्हारे
समय की रेत पर छोडे क़दमों की गहराई नापती है ,
यह जिंदगी दिए वक्त का जवाब मांगती है ।
सारे दिन के दिए प्रकाश का हिसाब मांगती है ॥

तुम्हारे कपड़े गहनों की
गिनती कीमत कल क्या होगी
कपडों के रंग ढंग बदले होंगे
रुपये की कीमत न जाने कहाँ होगी
आनेवाली पीढी तुम्हारी उपलब्धियों को आंकती है ,
यह जिंदगी दिए वक्त का जवाब मांगती है ।
सारे दिन के दिए प्रकाश का हिसाब मांगती है ॥

तुम भले ही इसको मत सुनो
चादर ओढ़ सो जायो
यह सारी रात जाग कर
तुम्हारी बुनी चादर के तार तार खोलती है
तुम्हारे ही धागों से तुम्हारी सुबह सवांरती है
यह ज़िन्दगी दिए वक्त का हिसाब मांगती है ।
सारे दिन के दिए प्रकाश का हिसाब मांगती है ॥