Saturday, September 19, 2009

देश विदेश

प्रभु की दी इस ,जीवन यात्रा में
आते हैं कई पड़ाव
कभी यहाँ कभी वहां
कहीं धूपकहीं छावं
हमें सब हाल में खुश रहना है ।
कभी वतन की माटी की महक
कभी अपनों से दूर होने का विषाद
यह तो उसकी सृष्टि के
सुख दुखों का वाद विवाद
ले बीच की राह सम रहना है ।
यह भी खूब सजी महफिल
सिलसिला सुनने और सुनाने का
एक मौन आह्वान प्रेम का
एक मूक आन्दोलन स्नेह का
जिसे बस चलते ही रहना है ।
इसमें न शोर ऊंची आवाजों का
न भीड़ न रास्ते बंद हैं
खुला आसमान फैली ज़मी
सब बोलने को स्वतंत्र हैं
जब जी चाहे सुन लेना है
न देश की सीमायों और
वीजायों के बंधन
न संपादकों की किट किट
जब चाहो कर लो अभिनन्दन
जी चाहे तो मौन हो जाना है ।
विज्ञानं की इन खोजों में

जब इंसान की भावनाए मिल जाएँगी
बनेगी तब नई दुनिया
जिसमे देश धर्म की सीमायें मिट जाएँगी

इस कारवां से जुड़ते चले जाना है ।

Sunday, September 6, 2009

सपने

पुरानी डायरी के पन्नो से -------------
सपने जीवन में कई रंग भरते है ,
सपने सच हो जायें तो इससे भला क्या है
और अगर सच न हुए तो रोना क्यूँ
सपने आख़िर सपने ही तो हैं ।
अपने जीवन में प्यार के रंग भरते हैं ,
प्यार दो और प्यार मिले ,फिर कहना ही क्या है
अगर नफरत भरे झोली में तो रोना क्यूँ
कहने को फिर भी कोई अपने तो हैं ॥

संतों के दर्शन जीवन में अपनी जगह रखते हैं
यों बिना प्रयास के कभी मिल जाएँ तो कहना क्या है
न मिलें तो भी चाह बनाये रखने में बुरा क्या
मिलें तो जीवन का रुख ही बदल देते हैं ।
पूजन जीवन में आनंद के रंग भरते हैं
गुरु मिले तो साधना का पथ मुश्किल हो कितना
चलते रहो मंजिल दुसाध्य हो क्यूँ न
गुरु भव सागर से पार करवा ही देते हैं ॥