Friday, July 31, 2009

एक पागलपन

यह कुच्छ पुरानी कवितायें हैं ----पुरानी यादों की तरह सामने आ जाती हैं अच्छा लगता है ,उन्हें फिर से पड़ कर

लोग कहते हैं
आज की मार कपट में
मानवता की बातें करना
विश्व शान्ति का सपना देखना
मात्र एक पागलपन है
पर मुझे यों पागल होना भला लगता है ।
एक दरद भरी दुनिया से
ये सपने अच्छे हैं
भुला देते हैं ,पल को
जीवन के कटु सत्यों को
उत्साह देते हैं ,नव जीवन का
नए फूलों का नए चमन का ।
सागर में तूफान आते
अस्त व्यस्त कर देते हैं जन जीवन को
पर कैसीं नीरव शान्ति है
उसकी गहराई में
कैसीं विशालता है उसके
विस्तार में
सागर सा हो सारा जग
यही सपना
मुझे भला लगता है ।
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सुंदर ,स्वच्छ ,दिल्ली
कल राह चलते
किसी ने रोका
पैरों तले एक चरमराता बोर्ड था
लिखा था ,सुंदर दिल्ली स्वच्छ दिल्ली
जैसे ही दूर हटाने को हुई
की वह बोल उठा
"मैं तुम्हारी हूँ
बस एक बार मुझे अपना तो कहो
फिर देखो मैं कितनी सुंदर हूँ
और स्वच्छ भी ॥
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ओ मेरे नौजवान ___
आज के नौजवान की पहचान .
चौराहे पर खड़ा है परेशान
एक ओ र माँ बाप का जीवन ,
धान्द्लियाँ ,
कोरे भाषण
खोखले आदर्श ।
दूसरी उओर ईमान की राह
पर काँटों से भरी
संघर्ष की राह
पर खून के धब्बे ,
प्यार की एक संकरी गली
उसमें दब जाने का आतंक है ।
कहाँ जाए किस ओ र ,
खड़ा है चौराहे पर बेचैन
एक ओ र खाई है
दूसरी ओ र कुआँ
सामने विशाल सागर ,
पीछे पहाडों का बीहड़ जंगल ।
चौराहे पर रुक गया है
आज का नौजवान
बेचैन और परेशान
किसी की प्रतीक्षा में ,कोई आए
राह दिखाए ,अन्धकार मिटाए
आगे बढ़ ओ मेरे नौजवान ;
तू स्वयम अपनी मशाल है ॥

Thursday, July 30, 2009

सुंदर दिल्ली .स्वच्छ दिल्ली

कुछ समय पहले की हैं ये कवितायें ------पुरानी यादों की तरह सामने आ जाती है ----
kal राह चलते
किसी ने रोका
पैरों तले एक चरमराता बोर्ड था
लिखा था -सुंदर दिल्ली ,स्वच्छ दिल्ली
जैसे ही दूर हटाने को हुआ कि वह बोल उठा
"मैं तुम्हारी हूँ
बस एक बार मुझे अपना तो कहो

फिर देखो मैं कितनी सुंदर हूँ

और स्वच्छ भी ॥

Tuesday, July 28, 2009

ढलती साँझ

ढलती साँझ में
देखती हूँ पड़ी है सिराहने
एक गठरी अधूरे सपनों की
अधूरी चाहतें कुछ अपनों की
इनको यहीं कहीं अनजानी थाह
में दफना दूँ ,
साथ गई तो --घनेरा दर्द सा ले कर
वापिस आएँगी मेरे साथ
कई दिनों की पुरानी
बास्
लायेंगी अपने साथ
लो दफना दिए ।

ढलती साँझ में
काले बादलों की टुकडियों में
चमकती पीली किनारी सी देखी है कभी
वैसे ही बिल्कुल वैंसे ही
चमक उठते हैं यह भाव
और देखती हूँ -----
झोली भरी है --जिसमें भरा
प्यार मेरे अपनों का
आशीष माता पिता ,गुरुजनों की
गुरुदेव का सानिध्य
और संतोष पूर्ण समर्पण का
इनसे तो मोह घनेरा है ,
संतुष्ट हूँ साथ जायेंगे
फिर मेरे साथ आयेंगे
और सवारूंगी यह भाव
कुछ भी अधूरा नहीं होगा
इस जीवन की सारी सीख
अपनें साथ लाऊंगी
तब साधना की शुरुआत न होगी
साधक जो चल आया
उन क़दमों की पहचान होगी
वह यात्रा की शुरुआत न होगी
अधूरी यात्रा की पूर्णाहूति होगी
वह मोक्ष पथ तो होगा
पर मोक्ष भी होगा ॥

Friday, July 24, 2009

कुछ सवाल कुछ जवाब

जीवन कुछ कुछ अधूरा सा लगता है
कुछ भी पालो
मगर कुछ खोनें का अहसास सा लगता है
जीवन कुछ कुछ अधूरा सा लगता है ।
चल रहे हैं
पर पीछे कुछ छूट गया ,ऐंसा लगता है
जीवन कुछ कुछ अधूरा सा लगता है ।
सच बोलो मेरे साथी
क्या तुमको भी कभी ऐंसा वैंसा लगता है ?

हाँ ,हाँ ---क्यूँ कि
इस अधूरे पॅन के पीछे
उस पूर्णतव को पा लेने की चाह छिपी
कुछ भी पा लेने के पीछे
उसके खोने की सच्ची कड़वाहट रुकी
चलते ही रहना जीवन
पर इसके रुकने के पीछे है मौत छिपी
यह जीवन दर्शन समझ ले
इसके पीछे ही जीवन की मुस्कराहट छिपी ॥

Wednesday, July 22, 2009

मन कहता है

मन कहता है
कविता लिखी नहीं जाती

वह फूट तीहै --निर्झर झरने सी
कभी फूलों की मुस्कान की तरह
कभी तितली के रंग बिरंगे रंगों सी
जुगनूँ की चाप छोड़ती चमक की तरह
कभी पहाडों और चट्टानों का
सीना चीरती ,
बह उठती है गंगा के पावन स्त्रोत की तरह
प्रकृति भेज उसे काशी हरिद्वार
शांत कर देती उसके उदगार ।
मन के दलियारे से
गई हूँ गंगा किनारे
वहां से कुछ बूंदे
अलकों में समेट
कुछ छोटे छोटे कलश भर लाई हूँ
उसके किनारे पड़े
छोटे चमकते कंकड़ भी बटोर लाई हूँ
मुखरित हुआ है मन
तुम्हे कुछ सुनाने चली आई हूँ

Monday, July 13, 2009

आज विदा की बेला में

आज विदा की इस बेला में
क्या भूलूं क्या याद करू
तुमसे मैनें क्या खोया क्या पाया

जीवन गुण अवगुण का मिश्रण
तो मैली कर देते
गुण उभरते ,कंचन कर देते काया

आज क्यूँ उलझूं इन प्रश्नों में
कंचन काया को ही देखूं
सौन्दर्य जिसमें तुम्हारा उभर आया
क्या भूलूं ,क्या याद करूँ --------
जगत तो सत्य मिथ्या का एक ही सिक्का

आदर्शों की खाली गागर बजती देखी
प्यार के नीचे घृणा पनपती देखी

आज भला यह सब क्यूँ सोचूं
तुम्हें तुमसा ही बस देखूं
जो रूप तुम्हारा निखर कर आया
क्या भूलूं क्या याद करूँ -------------
समय तो उजाले अंधेरों का क्रम

ज्योति अंधेरों के दम से चमकी
अंधेरों ने ज्योति से नाम
पाया
मौन मुखर की भला क्या लडाई
मौन तो ज्योति है

उसकी शक्ति समझ ,सबने शीश झुकाया ॥
क्या भूलूं क्या याद करूँ ------------

मेरी दुआ लेता जा

तेरे दिए हुए दर्द में प्रभु का दर्शन पाया
तेरे दिए आंसुओं से मैला आँचल

धोया आंसुओं का ये सैलाब देने वाले
मेरी दुआ लेता जा ।


किसी दिन तुम्हें किस्मत की बदगुमानी समझा
अंधेरों के बाद ही प्रकाश की बारी ,को भुलाया
किस्मत क्या है ,मुझे समझाने वाले
मेरी सदा लेता जा ।



ये उजाला अपरम्पार का मुझे कहाँ मिलता
जो अंधेरों से घबराकर दिया न ढूँढा होता
अंधेरों से मेरा दामन ढकने वाले
मेरा सलाम लेता जा ।


प्यास अनबुझी लेकर इसबार भी मर गए होते
अगर आपनें कुएं में यों न धकेल दिया होता
मेरी प्यास को जगाने वाले
तू भी चरणामृत लेता जा ।


उस परम शक्ति से बढ़ कर न कोई अपना है।
जीवनके सत्य को इस बार भी समझा न होता
पराया मान कर ठुकरा देने वाले
मेरा शुक्रिया लेता जा ।

Thursday, July 9, 2009

मेरे भगवन

मेरे भगवन ----
खुशियाँ तुमने तो बहुत बिखेरी मेरे आँगन में
मगर न जाने कहाँ क्या भूल हो गई
जीवन में खुल कर मुस्कराना न हुआ ॥

महफिलें तो सजी कई एक मेरे कानन में
मगर स्वर न जाने कहाँ खो गए
मौन तोड़ कर कभी मुझ से गाना न हुआ ॥

फूल बहुत महके जीवन की बगिया में
मगर खुशबु उनकी कब हवा में खो गई
जीवन के किसी पल को महकाना न हुआ ॥

साकी ने शमा कई बार जलाई मय खाने में
जाने कौन बार बार मय छलका गया
रोक सके जो अपने में वह पैमाना न हुआ ॥

बहारें तो कई बार आई भादों और सावन में
किसी ने मगर तोडी डोर झूले की
झूम कर मस्ती का कभी तराना न हुआ ॥

Tuesday, July 7, 2009

मत कहो जाने वाले चले गए

कौन कहता है
जाने वाले चले जाते हैं
यही कहीं ,हम्हारे तुम्हारे बीच
वह अपने अंकुर छोड़ जाते हैं ।
दुःख में बन के मन का संबल
उन्हें हम अपने पास पाते हैं ।
सुख में ,खुशी के हर फूल में ,
उन्हें मुस्कराता हम देख पाते हैं ।
स्थिर और शांत होता है जब मन
कितना स्पष्ट उनका अनुभव
सब ओर चहुँ ओर पाते हैं ॥

संतान से करो जब दुलार
मानों माँ के ऋण चुकाए जाते हैं
जब समस्याएँ घेर लेती हैं
पिता की सीख
बन के दीप
हमें रास्ते दिखा जाते हैं
देख कर पुत्र का यौवन
पति के स्निग्ध साए सिमिट आते हैं ।
देख कर पौत्र का गौरव
बड़ों के आशीष याद आते हैं ,
मत कहो जाने वाले चले जाते हैं ।

वक्त बदल जाते हैं
फिर शंकराचार्य
इस संस्कृति में करवट लेगा -
फिर परमहंस की समाधि लगेगी
फिर विवेकानंद का घोष गूंजेगा
फिर से गांधी एक बार
मानवता की बेदी पर बलि देगा ।
आई इस रात के बाद
नई किरण फूटेगी ,फिर सबेरा होगा
मत कहो जाने वाले चले गए
हमारे आस पास ,हमारी हर साँस में
वह जीवित हैं ,हमारे पास हैं ॥