Saturday, October 31, 2009

एक ख्याल

जो यह दर्द न होता
कष्ट न होते
कोई दुःख न होता
तो क्या होता
इन्सान इक माटी का पुतला होता ।

फिर अपने भी कहाँ होते
उनके दिए ज़ख्म भी न होते
आंसूं भी न होते
तो क्या होता
इन्सान पागल सा हरदम हँसता होता ।

समाज के बनाये यह फ़र्ज़ न होते
सृष्टि के अपने नियम न होते
इन्सान अपने कर्मों से
बंधा न होता
हर कोई अपने को खुदा समझता होता ।

फिर प्यार कहाँ होता
नफरत का संसार कहाँ होता
अनुभव भी न होते
तो क्या होता
इन्सान बस साँस लेती मूर्त होता ।

8 comments:

  1. अगर ये सब न होता तो.............
    ज़िन्दगी जीने लायक न होती.............

    ज़िन्दगी ज़िन्दगी ही न होती.............
    आपका धन्यवाद !

    ReplyDelete
  2. प्रेम जी
    सादर
    समूचा जीवन ही सापेक्ष है
    बहुत सुन्दर ढंग से आपने सार्थक तरीके से इस सापेक्षता को रेखांकित किया है.

    ReplyDelete
  3. जो यह दर्द न होता
    कष्ट न होते
    कोई दुःख न होता
    तो क्या होता
    इन्सान इक माटी का पुतला होता ।

    DARD HOTA HAI TABHI TO SUKH KA EHSAS HAI VARNA SUKH KI KOI KADR NA HOTI .... BAHOOT HUNDAR LIKHA HAI ...

    ReplyDelete
  4. जीवन का कोई न कोई आधार जरूर है.....

    ReplyDelete
  5. बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! बधाई!

    ReplyDelete
  6. आंसूं भी न होते
    तो क्या होता
    इन्सान पागल सा हरदम हँसता होता

    profound and beautiful as always.

    Manjul

    ReplyDelete
  7. आंसूं भी न होते
    तो क्या होता
    इन्सान पागल सा हरदम हँसता होता

    profound and beautiful as always.

    Manjul

    ReplyDelete