Sunday, October 25, 2009

बेचैन होता कौन

वक्त की चालों से दुखी कौन
जोवक्त की ताकत को समझता नहीं
इधर से उधर बेचैनहोता कौन
जो अपने अंतस को ही समझता नहीं ।

ज़िन्दगी भर पूर जीने का नाम
जो मिला है वह तेरा है
जो नहीं मिला वह तेरा था ही नहीं
खोने पाने से क्यूँ ऊपर तू उठता नहीं ।

इस षण भंगुर जगत का पाना खोना
उतना ही जितना उसे तू देख ले
आँखे बंद कर ,अंधकार की ओरसे
खोल प्रकाश में सब कुछ चमकता यहीं ।

आँखे खोल ,उनकी ओरडेख
जिन्होनें कभी कुछ पाया ही नहीं
और तो और पेट भर कभी खाया ही नहीं
उनसे नज़र मिला ,देख प्रभु कैंसे दीखता नहीं ।

बाहें फैलाये जग बुला रहा है
कान तो खोल ,आवाज़ तो सुन
आँखें तो खोल ,पुकार तो सुन
सच्चा साधक तो वक्त के आगे झुकता नहीं ।

6 comments:

  1. bahut badiya saccha saadhak to waqt ke aage jhukta nahi ati sundar
    jyotishkishore.blogspot.com

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  2. बहुत अच्छी भावपूर्ण रचना...यथार्थ के एक दम करीब...जीवन जीने का पाठ पढाती हुई...वाह.
    नीरज

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  3. बाहें फैलाये जग बुला रहा है
    कान तो खोल ,आवाज़ तो सुन
    आँखें तो खोल ,पुकार तो सुन
    सच्चा साधक तो वक्त के आगे झुकता नहीं ।
    आपकी रचनाओ मे मुझे एक परिपक्वता देखने को मिलती है जो मार्गदर्श्न भी करती है ......धन्यावाद!

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  4. ज़िन्दगी भर पूर जीने का नाम
    जो मिला है वह तेरा है
    जो नहीं मिला वह तेरा था ही नहीं
    खोने पाने से क्यूँ ऊपर तू उठता नहीं .........

    सत्य लिखा है ..... गीता के सार की तरह .... जो इन सब चीजों से उठ जाता है वाही सच्ची शान्ति और आनंद का अनुभव कर पाता है ........

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  5. सच्चा साधक तो वक्त के आगे झुकता नहीं । -सत्य वचन, उम्दा रचना!!

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  6. zindgi ke phalasphe ko
    bkhoobi bayaan karti hui
    saarthak rachnaa
    abhivaadan svikaareiN

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