Saturday, September 19, 2009

देश विदेश

प्रभु की दी इस ,जीवन यात्रा में
आते हैं कई पड़ाव
कभी यहाँ कभी वहां
कहीं धूपकहीं छावं
हमें सब हाल में खुश रहना है ।
कभी वतन की माटी की महक
कभी अपनों से दूर होने का विषाद
यह तो उसकी सृष्टि के
सुख दुखों का वाद विवाद
ले बीच की राह सम रहना है ।
यह भी खूब सजी महफिल
सिलसिला सुनने और सुनाने का
एक मौन आह्वान प्रेम का
एक मूक आन्दोलन स्नेह का
जिसे बस चलते ही रहना है ।
इसमें न शोर ऊंची आवाजों का
न भीड़ न रास्ते बंद हैं
खुला आसमान फैली ज़मी
सब बोलने को स्वतंत्र हैं
जब जी चाहे सुन लेना है
न देश की सीमायों और
वीजायों के बंधन
न संपादकों की किट किट
जब चाहो कर लो अभिनन्दन
जी चाहे तो मौन हो जाना है ।
विज्ञानं की इन खोजों में

जब इंसान की भावनाए मिल जाएँगी
बनेगी तब नई दुनिया
जिसमे देश धर्म की सीमायें मिट जाएँगी

इस कारवां से जुड़ते चले जाना है ।

3 comments:

  1. विज्ञानं की इन खोजों में
    जब इंसान की भावनाए मिल जाएँगी
    बनेगी तब नई दुनिया
    नई दुनिया की यह परिकल्पना अच्छी लगी.
    रचना बहुत अच्छी

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  2. हमें सब हाल में खुश रहना है ।
    कभी वतन की माटी की महक
    कभी अपनों से दूर होने का विषाद
    यह तो उसकी सृष्टि के
    सुख दुखों का वाद विवाद
    ले बीच की राह सम रहना है ।

    अति उत्तम सन्देश.................

    कविता बहुत ही बढ़िया है.
    हार्दिक बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  3. अच्छी कविता ! देश-विदेश की सीमाओं से परे नई तकनीक से विश्व को जोड़ने का सुंदर भाव व्यक्त हुआ है ।

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