Thursday, August 27, 2009

तुम कहाँ हो

यह जीवन अपने ही कर्मों का खजाना
वक्त बलवान है उस से डर कर रहना
भाग्य का ज़ोर है सब का यह कहना
फिर तुम कहाँ हो -तुम्हारी दया क्या है ?

दुःख सुख की यह सारी लीला
तीन गुणों से बना यह संसार है
उस में भला कैसे सम हो रहना
फिर तुम कहाँ हो -तुम्हारी प्रार्थना क्या है ?

सच है प्रार्थना ,प्रार्थना है
भीख नहीं ,वोह प्यार है
पर दर्द को भला कैसे सहना
फिर तुम कहाँ हो-तुम्हारी कृपा क्या है ?

बोध कहाँ से कैसे आए
हम अपनी अज्ञानता से बेजार हुए
तुम्हारी सृष्टि के नियम समझ न आए
फिर तुम कहाँ हो -तुम्हारा राज़ क्या है ?

6 comments:

  1. उसका राज उसके पास..वह अबूझा अनचीन्हा कैसे जाने उसे कोई..!!

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  2. प्रेम जी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है बहुत बहुत बधाई

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  3. "Tum kahan ho?"kitnee baar ghane andhere me ye khayal manme aata hai...!
    "haath pakad prabhu, bhool na jaun dwaar tihara.."

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  4. सच है प्रार्थना ,प्रार्थना है
    भीख नहीं ,वोह प्यार है
    पर दर्द को भला कैसे सहना
    फिर तुम कहाँ हो-तुम्हारी कृपा क्या है ?
    haan dil ke kuch gehan sawal,wo jawab nahi deta kabhi,sunder rachana,mann bahut si hulchul macha gayi.

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  5. यह जीवन अपने ही कर्मों का खजाना
    वक्त बलवान है उस से डर कर रहना

    SUNDAR PRAARTHNA HAI ...... AUR SANDESH BHI .... JO KARM KARNE KO PRERIT KRTI HAI

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