Wednesday, August 12, 2009

मेरा साया मुझ पर हँसता है

रात के वीराने में ,मन होता है उदास
जी चाहता है ,जी भर के रो लूँ
मगर रो नहीं पाती हूँ __
कि मेरा साया मुझ पर हँसता है ।
जीवन की यात्रा के दर्शन मंथन में
सीखा सुख दुःख एक समान
फिर यह रोने की चाह
क्या कोई साधक की पहचान
कि मेरा साया मुझ पर हँसता है

कहीं दूर अंधेरे मोड़ के भ्रम से
जब मन डरता है
पर घबरा नहीं पाती हूँ
कि मेरा साया मुझ पर हँसता है ।
जिस कल पर तेरा ज़ोर नहीं
आने वाले पल का ज्ञान नहीं ,भान नहीं
उसको लेकर शंकित होना
बोध का तो नाम नहीं
कि मेरा साया मुझ पर हँसता है

मन सपनों में कभी खोये ,भर जाता है उल्लास
जी चाहता है ,जी भर के झूमूं
मगर झूम नहीं पाती हूँ
कि मेरा साया मुझ पर हँसता है
ढलती संध्या की इस काया में
गति कहाँ ,अवरोध कहाँ
स्नेह की बहती इस नदिया में
भला पाना क्या और खोना कहाँ
कि मेरा साया मुझ पर हँसता है ॥

5 comments:

  1. न हो उदास ...और न हंसने दे साए को ...खुद अपने पर हँसे.. औरों को हंसाये.. बहुत शुभकामनायें ..!!

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  2. mera saya mujha par hasata hai .......samay ke chaktra me piskar hi to shaayad aisa ho jata par .......ek bahut hi sundar abhiwyakti

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  3. अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।अच्छी रचना है।

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  4. Is prabhavi rachna ke liye badhai swikaren.

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