Thursday, July 30, 2009

सुंदर दिल्ली .स्वच्छ दिल्ली

कुछ समय पहले की हैं ये कवितायें ------पुरानी यादों की तरह सामने आ जाती है ----
kal राह चलते
किसी ने रोका
पैरों तले एक चरमराता बोर्ड था
लिखा था -सुंदर दिल्ली ,स्वच्छ दिल्ली
जैसे ही दूर हटाने को हुआ कि वह बोल उठा
"मैं तुम्हारी हूँ
बस एक बार मुझे अपना तो कहो

फिर देखो मैं कितनी सुंदर हूँ

और स्वच्छ भी ॥

3 comments:

  1. छोटी किन्तु गम्भीर रचना।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  2. भावनाओं को संवेदित कर दिया आपने।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. वाह! बात कहने का अंदाज सुंदर है।

    रक्षाबंधन पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
    विश्व-भ्रातृत्व विजयी हो!

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