Thursday, July 9, 2009

मेरे भगवन

मेरे भगवन ----
खुशियाँ तुमने तो बहुत बिखेरी मेरे आँगन में
मगर न जाने कहाँ क्या भूल हो गई
जीवन में खुल कर मुस्कराना न हुआ ॥

महफिलें तो सजी कई एक मेरे कानन में
मगर स्वर न जाने कहाँ खो गए
मौन तोड़ कर कभी मुझ से गाना न हुआ ॥

फूल बहुत महके जीवन की बगिया में
मगर खुशबु उनकी कब हवा में खो गई
जीवन के किसी पल को महकाना न हुआ ॥

साकी ने शमा कई बार जलाई मय खाने में
जाने कौन बार बार मय छलका गया
रोक सके जो अपने में वह पैमाना न हुआ ॥

बहारें तो कई बार आई भादों और सावन में
किसी ने मगर तोडी डोर झूले की
झूम कर मस्ती का कभी तराना न हुआ ॥

2 comments:

  1. बहारें तो कई बार आई भादों और सावन में
    किसी ने मगर तोडी डोर झूले की
    झूम कर मस्ती का कभी तराना न हुआ ॥

    सुन्दर प्रस्तुति।

    नोट - वर्ड वेरीफिकेशन हँटाने का उपाय करें। लोगों को टिप्पणी देने में आसानी होगी।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  2. Behad sundar,sulajhi huee rachna..!

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