Tuesday, July 7, 2009

मत कहो जाने वाले चले गए

कौन कहता है
जाने वाले चले जाते हैं
यही कहीं ,हम्हारे तुम्हारे बीच
वह अपने अंकुर छोड़ जाते हैं ।
दुःख में बन के मन का संबल
उन्हें हम अपने पास पाते हैं ।
सुख में ,खुशी के हर फूल में ,
उन्हें मुस्कराता हम देख पाते हैं ।
स्थिर और शांत होता है जब मन
कितना स्पष्ट उनका अनुभव
सब ओर चहुँ ओर पाते हैं ॥

संतान से करो जब दुलार
मानों माँ के ऋण चुकाए जाते हैं
जब समस्याएँ घेर लेती हैं
पिता की सीख
बन के दीप
हमें रास्ते दिखा जाते हैं
देख कर पुत्र का यौवन
पति के स्निग्ध साए सिमिट आते हैं ।
देख कर पौत्र का गौरव
बड़ों के आशीष याद आते हैं ,
मत कहो जाने वाले चले जाते हैं ।

वक्त बदल जाते हैं
फिर शंकराचार्य
इस संस्कृति में करवट लेगा -
फिर परमहंस की समाधि लगेगी
फिर विवेकानंद का घोष गूंजेगा
फिर से गांधी एक बार
मानवता की बेदी पर बलि देगा ।
आई इस रात के बाद
नई किरण फूटेगी ,फिर सबेरा होगा
मत कहो जाने वाले चले गए
हमारे आस पास ,हमारी हर साँस में
वह जीवित हैं ,हमारे पास हैं ॥

6 comments:

  1. जाकर के भी जाने वाले होते हरदम पास।
    भाव अनोखे संग में रचना खासमखास।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.

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  2. बिल्कुल जी, अहसास कभी नहीं जाते. बेहतरीन रचना!

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  3. sundar rachna है............ सच कहा सब कोई hmaari aatmaa में ही हैं..... hmare kareeb ही hain

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  4. Ye kaisa yadon aur anubhav kaa safar aur saanjha hai..! Lagata hai,ek dost, qareeb baith ke mand, sanyat swarme hamse baat kar raha ho...behd sanjeeda anubhav!

    Aapke comments ke liye behad shukrguzaar hun..

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  5. Yahee rachnaa phir ekbaar padhne kaa man kiya...!

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