Wednesday, June 24, 2009

सुखद महक

एक अनजानी डगर से आवाज़ आई है
मैं चल पड़ी हूँ , यह सोच कर
कि तुम्हारे सिवा और कौन पुकार देगा ।
राह अंधियारी है अपरिचित भी
मैं चली जा रही हूँ -विशवास के साथ
तुमने बुलाया है -तू प्रकाश भी देगा ।
फिजा में एक सुखद महक आई है
अनुभव कर रही हूँ -साँस भर कर
यह पथ भी तेरे घर का पता देगा ।
जो भी राह तेरे घर ले जाए
चलते रहना है - खुश हो कर
इन्सान भला इसके बाद और क्या पा लेगा ।
अनेकों रस्ते तो मन का भ्रम हैं
पाना तो है -मन का भीतर
पा लेगा तू सब कुछ जिस दिन समझ लेगा ॥

3 comments:

  1. sukhad ehsaas sachmuch..ek pyaaree si khushboo...

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  2. सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  3. रचना में आध्यात्मिक पुट है । अच्छी लगी । आभार ।

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