Friday, June 19, 2009

आज ही आज यही पल जीवन है

रे मन बढ़ते रहने की कसम ले
बार बार पीछे मुड कर देखना क्या
राह चलते पत्थर चुभ सकते हैं
चलना है फिर तीसों से घबराना क्या ।
जीवन की गति पर अपना ज़ोर नहीं
फिर सपने क्यूँ उनका संजोना क्या ।
चलते रहना ही कला जीवन की
फिर जीत कैंसी और हारना क्या ।
खाली हाथ ही आया खाली ही जाएगा
फिर पाना किसे और खोना क्या ।
हर साँस के साथ मुस्कराए जा
जीना यही कौन जाने मरना क्या ।
मौत आदि है या कोई अंत
इस अनबुझी पहेली में उलझना क्या ।
मौत सबको आती ,हमको भी आएगी
उसकी आज से सोच करना क्या ।
आज ही आज यही पल जीवन है
जीए जा कल का भरोसा करना क्या ।
उस परम प्रभु की शरण ले ले
फिर कोई रोना क्यूँ और हँसना क्या ॥

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर रचना है।बधाई स्वीकारें।

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