Friday, June 19, 2009

कैसे तुम्हें बहलाऊं

तुम कहते हो
कुछ ऐसा लिखो
कि मस्ती का आलम छा जाए
बोलो सिसकती फिजायों में
मस्ती किस से मांगूं
बोलो क्या सुनायुं
कैसे तुम्हे बहलाऊँ ।
लो -फिजाओं को ही पकड़ लो
तो गीत नया बन
जाए
प्रकृति तो गोली बारूद
की
आवाजों से गूंगी हो गई
उस से क्या प्रेरणा पाऊँ
आज क्या गुन
गुनाऊं
कैसे तुम्हे बहलाऊँ ।
तो -समाज पर कुछ व्यंग हास लिख डालो
तो महफिल जम जाए
उसकी तो स्वयम ही
जीता जागता परिहास हूँ
महफिल में भला अपनी
खिल्ली स्वयं उडाऊं
कैसे तुम्हें बहलाऊं ।
हाँ -ऐसा अगर हो जाए
वेदना सारी पी कर
शिव की तरह नील कंठ हो जाऊँ
मैं मर मर कर जी जाऊँ
एंसे में स्वयम कुछ समझूं
कुछ तुम्हें समझाऊँ
एंसे तुम्हे बहलाऊँ
कैंसे तुम्हे बहलाऊँ ॥

5 comments:

  1. bahut bhaw puran.......... ek sundar rachana

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  2. बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
    बहुत सुन्दर लिखा है--

    हाँ -ऐसा अगर हो जाए
    वेदना सारी पी कर
    शिव की तरह नील कंठ हो जाऊँ
    मैं मर मर कर जी जाऊँ

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  3. भावपूर्ण सुन्दर रचना! बधाई.

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  4. हाँ -ऐसा अगर हो जाए
    वेदना सारी पी कर
    शिव की तरह नील कंठ हो जाऊँ
    मैं मर मर कर जी जाऊँ
    एंसे में स्वयम कुछ समझूं
    कुछ तुम्हें समझाऊँ

    one of my favourites among your poems

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