Friday, June 26, 2009

आंसूं --एक नई पहचान

आंसुओं के कई रूप देखे हैं
जीवन में कई बार आए
कभी दरद ले गए
कभी दे गए
कभी मन हल्का किया है इन्हों ने
कभी इक भार दे गए
कैंसे ममता की अंगडाई यां भर भर कर बहे,
कभी माता पिता के स्नेह से वंचित
दुःख के चीत्कार बने ये आंसू,
कैंसे खुशी से भर आई आँखों से
दब्दाबाए ये आंसू परन्तु
इस बार नई पहचान दे गए ये आंसू
प्रातः ध्यान में प्रभु के सर झुकाया था
निर्झर झरने से बह उठे
प्रश्न उठा __?
ये कैंसे और क्यूँ बहे आंसू
मगर उत्तर कहाँ था __?
बड़ी देर तक
कई दिन तक
ध्यान में सर झुकाऊं
बह उठे सरिता के जल से ये आंसू
सोचा __
मन में रोष अवश्य है
रिश्तों के झूठे बंधन का
द्वेष भी अवश्य है
जीवन प्रश्नों के मंथन का
दुःख और शोक कैंसा __?
जीवन के सत्य -दर्शन का
फिर ये क्रंदन कैंसा __?
पर क्या ये क्रंदन था __?
लगता था
मानो शिव की जट्टाओं से निकली गंगा
उत्तर आई थी आंखों में
तन मन नहा उठा था
इस पावन धरा में
जब ये रुके आंसू
तो कितना अन्तर था __
कहाँ गए
कौन ले गया था वह बहता निर्झर जल
कहाँ था वह रोष ,द्वेष
शोक और दुःख
इस बार स्वछता ,नीरवता
आनंद दे गए थे वह आंसू
अपनी एक नई पहचान दे गए थे ये आंसू ॥

4 comments:

  1. ये कैंसे और क्यूँ बहे आंसू
    मगर उत्तर कहाँ था __?
    बड़ी देर तक
    कई दिन तक
    ध्यान में सर झुकाऊं
    बह उठे सरिता के जल से ये आंसू
    सोचा __
    bahut sunder likha hai aapne

    ReplyDelete
  2. aansuon ko zubaan dedi aapne

    aansuon ki bhasha gadh dee aapne
    aapko badhaai !

    ReplyDelete
  3. बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर
    आभार
    मुम्बई टाईगर
    हे प्रभु यह तेरापन्थ

    ReplyDelete