Monday, June 22, 2009

मैं और मेरा मन

आज मन उदास है ----मैं नहीं
यह मैं और मेरा मन
नदिया के दो किनारे ----मालुम न था
मन कभी रोता और मैं हंसती हूँ
कभी यह हँसता है और मैं रोती हूँ
यह मेरे दो नैन कजरारे ----मालूम न था
कभी गूंजता किलकारियों से आँगन
कहीं सन्नाटा रोता मौत का क्रंदन
यह तो जीवन के साँझ सवेरे ------मालूम तो था
कभी मन रीझता बांसुरी की तानों में
कभी खो जाता मौन समाधि में
निराकार --साकार तेरे दो द्वारे ----मालूम तो था
आज मैं शांत हूँ --मेरा मन नहीं
मगर कोई सवाल नहीं
मन को भी तो यह मैं ही चलावे ----मालूम न था

4 comments:

  1. मन कभी रोता और मैं हंसती हूँ
    कभी यह हँसता है और मैं रोती हूँ

    बहुत खूब लिखा है आपने।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  2. kya kare man aisa hi hota hai.........sahi baat kahi aapane

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  3. Ek jeevan bharkee tapasya ke baad hee aise alfaaz koyi likh sakta hai...!

    http://kavitasbyshama.blogspot.com

    http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot

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