Monday, June 15, 2009

बचपन ------

काश बचपन ही बस जीवन होता
सुबह की सुनहरी धूप सा
सुखद हवा के झौंके सा
झर झर बारिश की बरसती बूंदों सा
कलियों सा खिला खिला
तितलियों के रंग तरंगों सा सुंदर होता
काश बचपन ही बस जीवन होता
चड्ढी पहन कर बारिश मैं भीगता
कच्चे पक्के आमों से खेलता खाता
मां की गोद मैं लोरी सुनता
पिता की उंगली पकड़ अलमस्त
जग के भले बुरे से बेखबर झूमता होता
काश बचपन ही बस जीवन होता
क्यूँ जीवन के साथ मृत्यु जुड़ी
क्यूँ अपने अपनों को छोड़ जाते
जाते तो कहाँ जाते
काश इन सब सवालों का
जवाब मुस्कराते बचपन को न धुंदन होता
काश बचपन ही बस जीवन होता

और वह हंसती खेलती गुडिया हजारों सवालों मैं घिर गई
वह रात रात जागती
आसमान के चाँद सितारों से पूछती
आख़िर वह भगवान है कौन
जिसके बुलाते ही उसके बाबा
बिना उनको बताए बिना उनसे मिले
एक दम चले गए \
उसके बाबा को ही
भगवान ने क्यूँ बुलाया
क्या उसके पास अपने बाबा न थे ?
वह जानती है
उसके बाबा सब से अच्छे थे
काश भगवान की माँ ने
उनको सिखाया होता
दूसरों का कुछ कितना भी अच्छा क्यूँ न हो
ले नहीं लिया जाता

और वह भोला सा बचपन कहीं पीछे छूट गया

1 comment:

  1. वह जानती है
    उसके बाबा सब से अच्छे थे
    काश भगवान की माँ ने
    उनको सिखाया होता
    दूसरों का कुछ कितना भी अच्छा क्यूँ न हो
    ले नहीं लिया जाता

    you have expressed this so poignantly and in such a touching way.

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